बड़ी उलझन में फंस बैठा तुम्हारी आरज़ू करके |
फ़साना इश्क़ का बरसों पुराना फिर शुरू करके ||
ये मेरा दिल फ़क़त दिल है शिवाला है न मस्ज़िद है |
चले आओ ज़रूरी है नहीं आना वजू करके ||
मेरे दिल में उतर आयी तेरे एहसास की ख़ुशबू |
हवाएं आ रहीं शायद तेरे दामन को छू करके ||
तेरे चर्चे करेंगे लोग सदियों तक ज़माने में |
कभी मिलने का वादा यार पूरा देख तू करके ||
नहीं हम वो नहीं हरगिज़ कि जैसा आपने सोचा |
घड़ी भर को ज़रा हमसे तो देखो गुफ़्तगू करके ||
मुझे डर है कहीं फिर आज अनहोनी न हो जाए |
बड़ी मुश्किल से लाया हूँ मैं दामन को रफ़ू करके ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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