Tuesday, 1 November 2011

बड़ी उलझन में


 बड़ी  उलझन  में  फंस   बैठा  तुम्हारी  आरज़ू        करके |
फ़साना  इश्क़  का  बरसों  पुराना  फिर  शुरू          करके ||

ये  मेरा  दिल  फ़क़त   दिल  है  शिवाला  है  न  मस्ज़िद  है |
चले     आओ     ज़रूरी     है     नहीं     आना  वजू   करके ||

मेरे   दिल   में   उतर   आयी   तेरे    एहसास   की  ख़ुशबू  |
हवाएं  आ  रहीं  शायद  तेरे  दामन  को  छू             करके ||

तेरे   चर्चे    करेंगे     लोग    सदियों    तक     ज़माने  में |
कभी  मिलने  का  वादा  यार  पूरा  देख  तू          करके ||

नहीं  हम  वो  नहीं   हरगिज़  कि   जैसा  आपने  सोचा |
घड़ी  भर  को  ज़रा  हमसे  तो  देखो  गुफ़्तगू     करके ||

मुझे  डर  है  कहीं  फिर  आज  अनहोनी    न  हो   जाए |
बड़ी  मुश्किल  से  लाया  हूँ  मैं   दामन  को  रफ़ू  करके ||

डा० सुरेन्द्र सैनी 

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