एक दफ़ा बस टूट के दरिया बहना था |
फिर तो सभी कमज़ोर क़िलों को ढहना था ||
टूट गया दिल आज अगर तो तअज़्जुब क्या ?
इश्क़ में इक दिन तो यह होकर रहना था ||
लोग तसल्ली दे सकते थे क्या करते ?
दर्द मगर चुपचाप हमीं को सहना था ||
वक़्त लगाना ठीक न था इतना अब तक |
उनको अगर इनकार पे क़ायम रहना था ||
खूब किया था याद सबक वो फ़ुरसत में |
उनसे मिले तो भूल गए जो कहना था ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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