परदा रुख़ -ए -रौशन से हटा क्यूँ नहीं देते ?
चेहरे के गुलिस्ताँ को हवा क्यूँ नहीं देते ?
दीदार की उम्मीद में बुत बने खड़े हैं |
दीवानों में हलचल सी मचा क्यूँ नहीं देते ?
ईनाम -ए -मुहब्बत में सजायें सभी मंज़ूर |
इलज़ाम कोई हम पे लगा क्यूँ नहीं देते ?
ख़ाली तो न होगा कभी आखोँ का समंदर |
दो घूँट हमें इनसे पिला क्यूँ नहीं देते ?
सीने में धड़कता है ये दिल आपकी ख़ातिर |
तो आप भी ये रिश्ता निभा क्यूँ नहीं देते ?
यूँ आप ही देते सदा क़ातिल को बढ़ावा |
इलज़ाम लगाते हो सज़ा क्यूँ नहीं देते ?
दिल में नए एहसास जगा लीजिये भी अब |
बेकार की बातों को भुला क्यूँ नहीं देते ?
चुप्पी बनी है आपकी लोगों में पहेली |
क्या हल है पहेली का बता क्यूँ नहीं देते ?
प्यासी ज़मीं के वास्ते बरसात ज़रूरी |
भीगी हुईं ज़ुल्फ़ों को हिला क्यूँ नहीं देते ?
हम भी तो समझते हैं सभी तौर -तरीक़े |
फिर आप हमें घर का पता क्यूँ नहीं देते ?
आने न कभी देंगे तेरे पास को ई ग़म |
इन हाथों में ये हाथ थमा क्यूँ नहीं देते ?
डा० सुरेन्द्र सैनी
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