Thursday, 3 November 2011

परदा रुख़ -ए -रौशन


परदा  रुख़ -ए -रौशन  से  हटा  क्यूँ  नहीं  देते ?
चेहरे  के  गुलिस्ताँ  को  हवा क्यूँ   नहीं   देते ? 

दीदार  की  उम्मीद  में  बुत   बने    खड़े      हैं |
दीवानों   में  हलचल  सी  मचा क्यूँ  नहीं  देते ? 

ईनाम  -ए -मुहब्बत  में  सजायें  सभी  मंज़ूर |
इलज़ाम  कोई  हम  पे  लगा क्यूँ  नहीं  देते ? 

ख़ाली  तो  न  होगा  कभी  आखोँ  का  समंदर |
दो  घूँट  हमें  इनसे  पिला क्यूँ   नहीं       देते ? 

सीने  में  धड़कता  है  ये  दिल  आपकी  ख़ातिर |
तो  आप  भी  ये  रिश्ता  निभा क्यूँ  नहीं    देते ? 

यूँ  आप  ही  देते  सदा   क़ातिल    को   बढ़ावा |
इलज़ाम  लगाते  हो  सज़ा क्यूँ      नहीं    देते ? 

दिल  में  नए  एहसास  जगा  लीजिये  भी  अब |
बेकार  की  बातों  को  भुला क्यूँ      नहीं    देते ?

चुप्पी  बनी  है  आपकी   लोगों        में  पहेली |
क्या  हल  है  पहेली  का  बता क्यूँ  नहीं  देते ? 

प्यासी  ज़मीं  के      वास्ते  बरसात   ज़रूरी |
भीगी  हुईं  ज़ुल्फ़ों  को  हिला क्यूँ नहीं  देते ? 

हम  भी  तो  समझते  हैं  सभी  तौर -तरीक़े |
फिर  आप  हमें  घर का  पता क्यूँ  नहीं देते ? 

आने  न  कभी  देंगे  तेरे  पास   को  ई  ग़म |
इन  हाथों  में  ये  हाथ  थमा क्यूँ  नहीं  देते ? 

डा०  सुरेन्द्र  सैनी         

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