Monday, 7 November 2011

चार पैसे दान में


चार  पैसे  दान   में   बस    क्या  दिए  हैं |
शहर   भर  में   पोस्टर   टंगवा   दिए  हैं ||

अब  के  होगी    जीत  पक्की  ही  हमारी |
बस्ती  में  दारू  के  ड्रम   खुलवा  दिए  हैं ||

ये  बशर   जो  सच  के  पर्चे  बांटता  था |
हाथ   इसके   आज   ही  कटवा दिए  हैं || 

जब  भी  पूछा क्या किया है ज़िंदगी  में |
बस  ज़रा  सा  हौले  से  मुस्का दिए  हैं || 

आज आमद है किसी लीडर की  शायद |
रास्तों  पर  फूल  जो   बिछवा  दिए  हैं || 

उम्र  भर  जो  बुतपरस्ती   से   लड़े   थे |
हमने  उनके  बुत भी अब बनवा दिए हैं || 

छांट  कर  शातिर से शातिर लोग हमने |
राजधानी   में   सभी   भिजवा  दिए   हैं || 

कल  वही   पेपर   में  टीचर पूछ    लेगा |
सब  सवालात आज जो समझा दिए  हैं || 

साब  जबसे  बन  गए  फूफा       हमारे |
डॉग   भी     इम्पोर्टेड   मंगवा  दिए   हैं || 

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

No comments:

Post a Comment