निग़ाहें ग़लत हैं तमाशाईयों की |
नुमाईश न कीजेगा अंगड़ाईयों की ||
तबीयत न तुम पूछो शैदाईयों की |
इनायत रही इन पे पुरवाईयों की ||
नवाज़ा मुझे कह के क़ाफ़िर सभी ने |
परस्तिश जो की तेरी परछाईयों की ||
मेरी ज़िंदगी में ये धुंध बन के छाई |
करामात देखो इन तन्हाईयों की ||
मैं समझा -बुझा के इसे थक गया हूँ |
है दिल क़ैद में अब भी रानाईयों की ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
No comments:
Post a Comment