Sunday, 13 November 2011

निग़ाहें ग़लत हैं


निग़ाहें    ग़लत    हैं    तमाशाईयों   की |
नुमाईश   न   कीजेगा   अंगड़ाईयों  की ||

तबीयत  न  तुम  पूछो      शैदाईयों  की |
इनायत  रही  इन  पे  पुरवाईयों      की ||

नवाज़ा  मुझे  कह  के  क़ाफ़िर  सभी  ने |
परस्तिश  जो  की  तेरी  परछाईयों  की ||

मेरी  ज़िंदगी  में  ये  धुंध   बन  के  छाई |
करामात    देखो    इन   तन्हाईयों   की ||

मैं  समझा -बुझा  के  इसे  थक  गया  हूँ |
है  दिल  क़ैद  में अब  भी  रानाईयों  की ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी   

No comments:

Post a Comment