याद आने लगी है किसी की गोया मसरूफ़ हम हो गए हैं /
दास्ताँ चल पडी ज़िंदगी की गोया मसरूफ़ हम हो गए हैं //
जाने कब से पडा था निठल्ला तन के कोने में बेकार ये दिल /
राह पर अब है ये बंदगी की गोया मसरूफ़ हम हो गए हैं //
मिलने - जुलने लगे दोस्तों से आने - जाने लगे महफ़िलों में /
खैरियत पूछते हैं सभी की गोया मसरूफ़ हम हो गए हैं //
छा गए थे घनेरे जो बादल अब सभी दूर जाने लगे हैं /
बात अब हो रही रौशनी की गोया मसरूफ़ हम हो गए हैं //
जिससे क़ायम है इस दिल की धड़कन नूर आँखों में ठहरा हुआ है /
आरज़ू है फ़क़त इक उसी की गोया मसरूफ़ हम हो गए हैं //
डा० सुरेन्द्र सैनी
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