फ़ाइलों में फंसाया गया |
मुझको जी भर सताया गया ||
घर में दफ़्तर में क्या हर जगह |
उँगलियों पर नचाया गया ||
इक तरक्क़ी न पाई कभी |
ज़िंदगी भर घुमाया गया ||
ज़ीस्त का मुझको देकर फ़रेब |
कब्र में ही लिटाया गया ||
आँख उनसे लड़ी बस तभी |
मुझको सूली चढ़ाया गया ||
जब तमंचा न काम आ सका |
मुस्कुरा कर डराया गया ||
मेरी ख़ातिर को उनके यहाँ |
सब रक़ीबों को लाया गया ||
अम्न की बात कर करके रोज़ |
बस तमाशा बनाया गया ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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