जितनी लगती है अच्छी सियासत |
उतनी है ये बुरी भी सियासत ||
यूँ सभी को न भाती सियासत |
हर किसी को न आती सियासत ||
बाप दादाओं में थी सियासत |
उसके है ख़ून में भी सियासत ||
इक ज़माना था जब थी सियासत |
मर गई आजकल की सियासत ||
अर्श पे जिसको ले जाए इक दिन |
फर्श पे भी गिराती सियासत ||
जब सुलह की चले बात कोई |
आग में डाल दे घी सियासत ||
इक दफ़ा स्वाद इसका जो चख ले |
वो न छोड़े कभी भी सियासत ||
कल तलक थी न कोई लियाक़त |
आई तहज़ीब जब की सियासत ||
क्या करे तज़किरा इस पे कोई |
आज है लंगडी लूली सियासत ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
No comments:
Post a Comment