Wednesday, 26 October 2011

जितनी लगती है अच्छी


जितनी लगती है अच्छी सियासत |
उतनी  है  ये  बुरी   भी  सियासत ||

यूँ सभी  को  न  भाती  सियासत |
हर किसी को न आती सियासत ||

बाप  दादाओं   में  थी   सियासत |
उसके है  ख़ून   में  भी सियासत ||

इक ज़माना था जब थी सियासत |
मर  गई  आजकल की सियासत ||

अर्श पे जिसको ले जाए इक दिन |
फर्श  पे  भी   गिराती   सियासत ||

जब  सुलह   की  चले   बात  कोई |
आग  में   डाल   दे  घी  सियासत ||

इक  दफ़ा स्वाद इसका जो चख ले |
वो  न  छोड़े   कभी  भी  सियासत ||

कल  तलक  थी न कोई लियाक़त |
आई  तहज़ीब जब  की  सियासत ||

क्या  करे  तज़किरा इस  पे  कोई |
आज  है  लंगडी  लूली  सियासत ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी  

No comments:

Post a Comment