उनकी यादों के जब क़ाफ़िले तन्हा दिल के क़रीब आ गए |
इक समुंदर की मानिंद तब अश्क़ पलकों पे लहरा गए ||
नाख़ुदा भी परेशान था क़श्ती भी डगमगाती रही |
देख साहिल पे उनकी झलक हम तो तूफाँ से टकरा गए ||
हमसे मीठी सी तक़रार में बारहा अपने इन्कार में |
जीत कर जब वो इतरा उठे हार का हम मज़ा पा गए ||
चांदनी रात में आ गए वो अचानक हुए बेनक़ाब |
झट से मुरझा गई चांदनी चाँद तारें भी घबरा गए ||
वो हमें आज़माते गए हम भी देते रहे इम्तिहाँ |
वो ये समझे हम उकता गए हम ये समझे वो बाज़ आ गए ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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