Sunday, 30 October 2011

उनकी यादों के जब क़ाफ़िले


उनकी  यादों  के  जब  क़ाफ़िले  तन्हा दिल के   क़रीब  आ  गए |
इक  समुंदर  की  मानिंद  तब    अश्क़    पलकों  पे  लहरा  गए ||

नाख़ुदा  भी  परेशान   था  क़श्ती    भी           डगमगाती     रही |
देख  साहिल  पे  उनकी  झलक  हम  तो  तूफाँ  से    टकरा  गए ||

हमसे  मीठी  सी    तक़रार     में     बारहा       अपने  इन्कार  में |
जीत  कर  जब  वो  इतरा  उठे  हार  का       हम  मज़ा  पा  गए ||

चांदनी   रात  में  आ  गए  वो  अचानक हुए                  बेनक़ाब   |
झट  से  मुरझा    गई    चांदनी    चाँद    तारें     भी    घबरा    गए ||

वो     हमें     आज़माते    गए     हम     भी     देते     रहे    इम्तिहाँ |
वो  ये  समझे  हम  उकता  गए  हम  ये  समझे  वो  बाज़  आ  गए ||

डा० सुरेन्द्र सैनी  

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