Monday, 31 October 2011

फ़ाइलों में फंसाया


फ़ाइलों      में        फंसाया     गया |
मुझको    जी   भर   सताया   गया ||

घर  में  दफ़्तर  में  क्या  हर  जगह |
उँगलियों      पर     नचाया     गया ||

इक    तरक्क़ी    न    पाई    कभी |
ज़िंदगी    भर घुमाया           गया ||

ज़ीस्त  का  मुझको  देकर  फ़रेब |
कब्र     में     ही   लिटाया    गया ||

आँख    उनसे    लड़ी   बस   तभी |
मुझको  सूली      चढ़ाया      गया ||

जब   तमंचा   न   काम  आ  सका |
मुस्कुरा     कर       डराया     गया ||

मेरी    ख़ातिर    को    उनके   यहाँ |
सब    रक़ीबों    को    लाया   गया ||

अम्न  की  बात  कर  करके  रोज़ |
बस     तमाशा     बनाया     गया ||

डा० सुरेन्द्र सैनी 

Sunday, 30 October 2011

उनकी यादों के जब क़ाफ़िले


उनकी  यादों  के  जब  क़ाफ़िले  तन्हा दिल के   क़रीब  आ  गए |
इक  समुंदर  की  मानिंद  तब    अश्क़    पलकों  पे  लहरा  गए ||

नाख़ुदा  भी  परेशान   था  क़श्ती    भी           डगमगाती     रही |
देख  साहिल  पे  उनकी  झलक  हम  तो  तूफाँ  से    टकरा  गए ||

हमसे  मीठी  सी    तक़रार     में     बारहा       अपने  इन्कार  में |
जीत  कर  जब  वो  इतरा  उठे  हार  का       हम  मज़ा  पा  गए ||

चांदनी   रात  में  आ  गए  वो  अचानक हुए                  बेनक़ाब   |
झट  से  मुरझा    गई    चांदनी    चाँद    तारें     भी    घबरा    गए ||

वो     हमें     आज़माते    गए     हम     भी     देते     रहे    इम्तिहाँ |
वो  ये  समझे  हम  उकता  गए  हम  ये  समझे  वो  बाज़  आ  गए ||

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Wednesday, 26 October 2011

जितनी लगती है अच्छी


जितनी लगती है अच्छी सियासत |
उतनी  है  ये  बुरी   भी  सियासत ||

यूँ सभी  को  न  भाती  सियासत |
हर किसी को न आती सियासत ||

बाप  दादाओं   में  थी   सियासत |
उसके है  ख़ून   में  भी सियासत ||

इक ज़माना था जब थी सियासत |
मर  गई  आजकल की सियासत ||

अर्श पे जिसको ले जाए इक दिन |
फर्श  पे  भी   गिराती   सियासत ||

जब  सुलह   की  चले   बात  कोई |
आग  में   डाल   दे  घी  सियासत ||

इक  दफ़ा स्वाद इसका जो चख ले |
वो  न  छोड़े   कभी  भी  सियासत ||

कल  तलक  थी न कोई लियाक़त |
आई  तहज़ीब जब  की  सियासत ||

क्या  करे  तज़किरा इस  पे  कोई |
आज  है  लंगडी  लूली  सियासत ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी  

Monday, 24 October 2011

जो कहना है कह भी दे


जो  कहना  है  कह  भी  दे |
जज़्बातों  को छुट्टी     दे ||

घुट  घुट  मरने  वाले  को |
जा  जादू  की    झप्पी  दे ||

अन्दर  बच्चा    सोता   है |
दस्तक  हल्की  हल्की  दे ||

पहले  ही   दिल  टूटा  है |
आजा  तू  भी  गाली  दे ||

मुझसे  तुझको  जो  भी  हैं |
सारे  शिकवे    कह  ही  दे ||

दर  पर  भूखा   आया  है |
पहले   उसको   रोटी   दे ||

उजरत  तो  अच्छी  पाली |
अब  लोगों  का  बाकी   दे ||

दौलत  मत  दे  बच्चों  को |
बस  तू  बातें   अच्छी   दे ||

डा० सुरेन्द्र सैनी